सफला एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। हर महीने में दो एकादशी आती हैं – एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में। पौष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस पावन दिन पर व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सफलता, सुख और समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही, यह व्रत पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
सफला एकादशी का धार्मिक महत्व
पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं इस एकादशी को भगवान नारायण की पूजा का विधान है एकादशी भगवान नारायण से संबंधित तिथि कहलाती है इस दिन नारियल सुपारी आंवला अनार तथा लौंग आदि से भगवान नारायण जी का विधिवत पूजन करना चाहिए इस दिन दीपदान तथा रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है जो लोग इस दिन रात्रि जागरण करते हैं तथा दीपदान करते हैं भगवान नारायण उनसे बहुत प्रसन्न होते हैं तथा बैकुंठ में उनका निवास होता है |
सफला एकादशी की व्रत कथा
एक राजा थे जिनका नाम था महिष्मान उनके चार बेटे थे l उनका सबसे छोटा बेटा बहुत दुष्ट था पापी तथा पाप कार्यों में रत रहता था l वह राज्य के धन को अनाप-शनाप वैष्णो में खर्च करता था राजा ने उसे कई बार समझाया किंतु वह नहीं माना l जब उसके पाप कर्म अत्यधिक बढ़ गए तो राजा ने दुखी होकर उसे अपने राज्य से निकाल दिया जंगलों में भटकते हुए भी उसने अपनी पुरानी आदतें नहीं छोड़ी l एक बार लूट मार के दौरान उसे तीन दिन तक भूखा रहना पड़ा l भूख से परेशान होकर उसने एक साधु की कुटिया में चोरी का प्रयास किया परंतु उसे उस दिन सफला एकादशी होने के कारण वहां कुछ भी खाने को ना मिल सका और वह महात्मा की नजरों से भी नहीं बच सका तब उसे देखकर महात्मा ने सब कुछ समझ लिया था इसके बावजूद उसे वस्त्र आदि दिया और मीठी वाणी से सत्कार किया l महात्मा के व्यवहार से उसकी बुद्धि में परिवर्तन आ गया वह सोचने लगा यह कितना अच्छा मनुष्य है मैं तो इसके घर चोरी करने आया था पर उसने मेरा सत्कार किया है मैं भी तो मनुष्य हूं मगर कितना दुराचारी तथा पापी हूं l उसे अपने भूल का एहसास हो गया तथा वह क्षमा याचना करता हुआ साधु के चरणों में गिर पड़ा l और उन्हें स्वयं ही सब कुछ सच-सच बता दिया जीवन उसके बाद साधु ने उसे क्षमा कर दिया तथा इस कुटिया में साधु के साथ वह भी जीवन यापन करने लगा धीरे-धीरे उसके चरित्र के सारे दोष दूर हो गए वह महात्मा की आज्ञा से एकादशी का व्रत भी करने लगा जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया महात्मा के वेश में वह राजा महिष्मान ही थे पुत्र को सद्गुणों से युक्त देखकर वे उसे राज भवन ले आए और उसे राजकाज सौंप दिया उसके चरित्र में परिवर्तन देखकर प्रजा भी हैरान रह गई राजा ने सारा राज पाठ उसे सौंप दिया तथा उसने सारा राज का संभाल कर आदर्श प्रस्तुत किया तथा जीवन भर सफला एकादशी का व्रत तथा प्रचार करता रहा जो भी व्यक्ति सप्लाई एकादशी का व्रत करता है उसे समस्त दुखों से छूट जाता है और भगवान नारायण की कृपा उसे प्राप्त होती है तथा बैकुंठ में उसका निवास होता है |
क्या करें:
क्या न करें:
सफला एकादशी का व्रत न केवल धर्म और अध्यात्म का मार्ग दिखाता है, बल्कि यह मनुष्य को अपने भीतर की नकारात्मकताओं से मुक्ति पाने में भी सहायता करता है।
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