कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था।
प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने एक ही बाण के द्वारा उसका अन्त कर दिया था। त्रिपुरासुर एक बहुत ही मायावी और भयानक राक्षस था। उसने तीनों लोकों में बहुत ही भयानक स्थिति उत्पन्न कर दी थी जिसके कारण देवता भी भयभीत स्थिति में थे जिस कारण भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर का वध किया तो भगवान विष्णु ने भगवान शिव को त्रिपुरारी कह कर सम्बोधित किया तथा सभी देवी देवताओं के मन में जो भय व्याप्त था उसका अंत हुआ जिस कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।
जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया तब देवताओं ने भगवान पर पुष्पों की वर्षा की तथा भगवान की नगरी काशी में देवताओं ने दीपदान किया दीप जला करके काशी को दीपों की द्वारा प्रकाश व्याप्त किया यही त्यौहार आम जनमानस में देव दीपावली के नाम से प्रचलित हुआ जो की काशी से प्रारंभ हुआ और समस्त भारत वर्ष में इसका बहुत अधिक प्रचलन हुआ और बहुत उल्लास के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है
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