पुत्रदा एकादशी
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं इस दिन रखा जाने वाला व्रत संतान दायक होता है अतः इस व्रत को विधिपूर्वक करने से संतान की रक्षा भी होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रतकथा का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यधिक महत्व है, और उनमें से पुत्रदा एकादशी को विशेष स्थान प्राप्त है। यह एकादशी संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। यह व्रत हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।
पुत्रदा एकादशी व्रतकथा
सुकेतु नाम का एक गृहस्थ था उसकी पत्नी का नाम शैव्व्या था उनके पास कोई संतान नहीं थी दोनों पति-पत्नी संतान के लिए व्याकुल थे एक बार निराश हो करके सुकेतु ने आत्महत्या करने का विचार किया वह पत्नी को अकेला छोड़कर जंगलों में चला गया और भूखा प्यासा एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने भाग्य को कोसने लगा तभी उसे किसी ऋषि के कंठ से उच्चारित वेद मंत्र सुनाई दिए न जाने उस आवाज में कैसा जादू था कि वह उस ध्वनि की ओर चल दिया थोड़ी दूर चलने पर उसने देखा कि एक स्थान पर बहुत से ब्राह्मण कमल से भरे तालाब के तट पर वेदों का पाठ कर रहे हैं सुकेतु ने सोचा कि यहां पर अवश्य ही मेरी समस्या का हल मुझे प्राप्त हो जाएगा l और सुकेतु ने श्रद्धा पूर्वक उन सभी को प्रणाम करके वेद पाठ सुनने के लिए बैठ गया वेद पाठ के उपरांत उन सभी ब्राह्मणों ने पूछा कि आप किस प्रयोजन से यहां पर आए हैं सुकेतु ने ब्राह्मणों को अपने आने का कारण बताया ब्राह्मणों ने उसकी व्यथा समझकर उसे पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी सुकेतु ने घर आ कर पत्नी के साथ में श्रद्धा पूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जिसके फल स्वरुप उसे पुत्र प्राप्त हुआ तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ है नि:संतान दंपत्तियों को चाहिए कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करें जो दंपत्ति इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करते हैं ईश्वर की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत केवल संतान प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि संतान की भलाई और जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी किया जाता है। इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम से करने पर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप इस दिन विशेष फलदायी माना गया है।
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